कठिन प्रस्तर में अगिन सूराख। मौन पर्तों में हिला मैं कीट। (ढीठ कितनी रीढ़ है तन की - तनी है!)
आत्मा है भाव : भाव-दीठ झुक रही है अगम अंतर में अनगिनत सूराख-सी करती।
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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