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कविता

कठिन प्रस्तर में

शमशेर बहादुर सिंह


कठिन प्रस्‍तर में अगिन सूराख।
मौन पर्तों में हिला मैं कीट।
(ढीठ कितनी रीढ़ है तन की -
                  तनी है!)

 

आत्‍मा है भाव :
भाव-दीठ
      झुक रही है
अगम अंतर में
      अनगिनत सूराख-सी करती।

 


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